कालजई साहित्यकार जयशंकर प्रसाद जी (133 वां जन्मदिन)
गद्य-पद्य हर रूप में, पाया है सम्मान
जयशंकर साहित्य है, हिन्दी को वरदान
जयशंकर प्रसाद जी का भारतवर्ष की पावन धरा पर अवतरण 30 जनवरी 1890 ई. को अर्थात माघ शुक्ल दशमी, संवत् १९४६ वि॰ को काशी के गोवर्धनसराय में हुआ। हिंदी का दुर्भाग्य अल्पायु में ही निर्वाण 15 नवंबर 1937 ई. को मात्र 47 वर्ष की अवस्था में हुआ। आप हिन्दी भाषा को समृद्ध करने वाले कालजई कवि, नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार और निबन्धकार थे।
प्रसाद जी का नाम हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में बड़े सम्मान से लिया जाता है। आपने ही हिन्दी पद्य में छायावाद की स्थापना की। आपके काव्य कौशल में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध की अविरल धारा प्रवाहमान हुई, अपितु जीवन के बहुआयामों (श्रेष्ट, सूक्ष्म व व्यापक) चित्रण शक्ति प्रवाहित हुई और महाकाव्य "कामायनी" तक पहुँचकर वह आज तक काव्य प्रेरक शक्तिकुञ्ज काव्य के रूप में प्रतिष्ठित है। यदि इसे समय रहते सही से प्रचारित व प्रसारित किया गया होता तो आपको नोवल पुरस्कार भी प्राप्त होता। हिन्दी में बाद के उभरे सभी आन्दोलन, वाद अथवा प्रगतिशील एवं नयी कविता समस्त धाराओं के आलोचकों तथा कवियों ने "कामायनी" को हिन्दी का एक महत्वपूर्ण काव्य ग्रन्थ माना। इसी से \'खड़ीबोली\' हिन्दी काव्य के रूप में सहर्ष स्वीकृत की गयी। आप की जयन्ती आपको शत शत नमन।
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